एक दूसरा पहलु है अपने सोशल मीडिया का. फेसबुक ट्विटर और तमाम सोशल मीडिया पर आये दिन बस चुनाव की पोस्ट देखने को मिलती हैं. कुछ लोग बड़ी बेबाकी से अपने नेता के समर्थन में पोस्ट डालते हैं तो कुछ लोग निरपेक्ष होकर वोट जागरूकता करते हैं. मगर अंधभक्तो की कमी नहीं है. अंधभक्त अपने नेता के विरुद्ध एक शब्द नहीं सुनना चाहते. वो चाहते हैं की सभी उनकी हाँ में हाँ मिलाएं. भले ही उनका प्रिय नेता कितना भी बड़ा अपराधी, दलबदलू, गुंडा मवाली या फिर अपराधी ही क्यों न हो. वे अपने तर्कों से पहले सहमत करना चाहते हैं और अगर आप न सहमत हो तो गाली-गलोच पर उतर आते हैं. इसके उदाहरण फेसबुक पर कई पेजेज़ पर सभी ने देखे भी होंगे.
सभी अंधभक्तो से कहना चाहता हूँ ये लोकतंत्र है मेरे भाई. ज़रूरी नहीं की सभी आपकी बात से सहमत हो. ये भी ज़रूरी नहीं की आप या आपका प्रिय नेता ही जीते. जो काम अच्छा करेगा जनता उसी को चुनेगी. वे कहते हैं जनता बेबकूफ है. बहकावे में आकार वोट डालती है. मैं कहता हूँ अंधभक्त बेबकूफ हैं. देश का हर नागरिक जिसे चाहे उसे वोट कर सकता है. ये उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर करता है. 18 के बालिग युवक को क्या करना है ये अब अंधभक्त बताएगा भला. आज का युवा सभी नेतायो की हिस्ट्री, काम और आचरण को देख कर वोट करेगा.
मान लीजिये आपके परिवार में 10 सदस्य हैं. डिनर का टाइम है और भूंख भी जोरो की लगी है. कुछ लोग पिज़्ज़ा खाना चाहते हैं और कुछ लोग बर्गर तो अब फैसला कैसे होगा? लोकतंत्र में सभी की सुनी जाती है और सभी से पूछा जायेगा की पिज़्ज़ा किस को खाना है और बर्गर किस को. अगर वोट ज्यादा पिज़्ज़ा के हुए तो सभी पिज़्ज़ा खायेंगे नहीं तो बर्गर. अब यदि बराबर वोट पिज़्ज़ा और बर्गर के हो जाते हैं तो फिर से चुनाव कराया जायेगा. यही सिस्टम भारत की राजनीती का भी है. आम पब्लिक पहले नेताओ को चुनती है और फिर नेता अपने प्रधानमंत्री को. अब यदि 272+ चुने हुए नेता एक ही नेता को प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं चुनते तो फिर जनता पर दोवारा छोड़ दिया जाता है और फिर से चुनाव का फैसला आम जनता को करना होता है.
पिज़्ज़ा और बर्गर वाले उदाहरण में अब यदि आपकी मम्मी आपका पिज़्ज़ा-बर्गर का अधिकार छीन लें और कोई विकल्प न हो बदले में सिर्फ रोटी ही दें तो ये उस समय तानाशाही होगी. तानाशाही शासन में सिर्फ एक ही पावरफुल शासक की चलती है. इसमें विद्रोह और दमन का दोनों होते हैं. शुक्र हैं हमारे भरत में लोकतंत्र है.
मेरा सभी अंधभक्तो से अनुरोध है की भारत का प्रधनमंत्री चाहे जो भी बने ये फैसला खुद जनता को करने दीजिये. खुद एक्सपर्ट बनकर अपनी राय मत थोपिए. अगर कुछ करना ही है तो वोट देने के लिए जागरूक करिए. यकीन मानिये सर्व सम्मति से जो फैसले लिए जाते हैं वे कभी गलत हो ही नहीं सकते.
चुनो वही जो लगे सही, वरना नोटा तो है की...
वोट जरुर करें.. जय हिन्द
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इंजिनियर मैक मीर
डायरेक्टर
आईटीमैकडॉटकॉम
आगरा
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