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Friday, April 25, 2014

वोट करते समय आपके दिमाग में कौन सा मुद्दा रहेगा और क्यों?

बहुत सारे मुद्दे हैं. बिजली 24 घंटे, पानी, के अलावा रोज़गार, सड़क समस्याए आगरा में इतनी हैं की क्या-क्या लिक्खें.


किसी पार्टी की ओर से विपक्षी पार्टी पर लगाए गए आरोप-प्रत्यारोप की राजनीती को आप कितना सही मानते हैं और क्यों?

जब किसी पार्टी के नेता पर सवाल मीडिया की ओर से दागा जाता है तो वह अपने बचाव में दूसरी पार्टी के नेता का उदाहरण पेश कर बचने की कोशिश करने लगता है. इसे स्वार्थ की राजनीती कहते हैं, और सभी पार्टियों में सिर्फ स्वार्थ के लिए काम हो रहा है.


आप इन दिनों चुनाव की ख़बरें देखना पसंद कर रहे हैं या आईपीएल के मैच?

आईपीएल तो बस मनोरंजन मात्र है इससे किसी का भला नहीं होगा सिवाय विज्ञापन कंपनियों और खिलाडियों के. आम जनता को चुनावी चर्चा में ध्यान देना चाहिए.

ग़रीबो के लिए स्वास्थ सेवायो के बारे में सरकार क्यों ध्यान नहीं देती है?

केंद्र और राज्य सरकार ने ग़रीबो के लिए बहुत सी योजनायें चलाई हुई हैं. मगर दुर्भाग्य इस बात का है की ज़मीनी हकीकत में यह योजनाएं धरातल पर कम ही कार्य कर पा रही हैं.


Sunday, April 20, 2014

अंधभक्त और भारत की राजनीती



आज देश में चुनावी माहौल है. टीवी चैनल्स पर सारा दिन समाचार चलते रहते हैं. समाचार चैनल्स की ख़ूब बल्ले-बल्ले हो रही है. डेली शोज़ टी आर पी के लिए तरस रहे हैं. हर चौपाल गली मोहल्ले में चुनावी चर्चा सरेआम है. कौन बनेगा प्रधानमंत्री और घोषणा पत्र के बाद आपकी अदालत और फिर हम देखते हैं हेडलाइंस और नेताओ के इंटरव्यू. मुझे ख़ुशी है की देश का हर वर्ग अबकी इन चुनावो में बहुत रूचि ले रहा है. और हो भी क्यों न आखिर सवाल देश का जो है. जनता जागरूक हो रही है किसे वोट करना है और किसे नहीं ये सब समझ रही है. यहाँ तक की जनता की जागरूकता को देख सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद चुनाव आयोग को इस बार नोटा का आप्शन भी देना पड़ा है.

एक दूसरा पहलु है अपने सोशल मीडिया का. फेसबुक ट्विटर और तमाम सोशल मीडिया पर आये दिन बस चुनाव की पोस्ट देखने को मिलती हैं. कुछ लोग बड़ी बेबाकी से अपने नेता के समर्थन में पोस्ट डालते हैं तो कुछ लोग निरपेक्ष होकर वोट जागरूकता करते हैं. मगर अंधभक्तो की कमी नहीं है. अंधभक्त अपने नेता के विरुद्ध एक शब्द नहीं सुनना चाहते. वो चाहते हैं की सभी उनकी हाँ में हाँ मिलाएं. भले ही उनका प्रिय नेता कितना भी बड़ा अपराधी, दलबदलू, गुंडा मवाली या फिर अपराधी ही क्यों न हो. वे अपने तर्कों से पहले सहमत करना चाहते हैं और अगर आप न सहमत हो तो गाली-गलोच पर उतर आते हैं. इसके उदाहरण फेसबुक पर कई पेजेज़ पर सभी ने देखे भी होंगे.

सभी अंधभक्तो से कहना चाहता हूँ ये लोकतंत्र है मेरे भाई. ज़रूरी नहीं की सभी आपकी बात से सहमत हो. ये भी ज़रूरी नहीं की आप या आपका प्रिय नेता ही जीते. जो काम अच्छा करेगा जनता उसी को चुनेगी. वे कहते हैं जनता बेबकूफ है. बहकावे में आकार वोट डालती है. मैं कहता हूँ अंधभक्त बेबकूफ हैं. देश का हर नागरिक जिसे चाहे उसे वोट कर सकता है. ये उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर करता है. 18 के बालिग युवक को क्या करना है ये अब अंधभक्त बताएगा भला. आज का युवा सभी नेतायो की हिस्ट्री, काम और आचरण को देख कर वोट करेगा.

लोकतंत्र किसे कहते हैं?



मान लीजिये आपके परिवार में 10 सदस्य हैं. डिनर का टाइम है और भूंख भी जोरो की लगी है. कुछ लोग पिज़्ज़ा खाना चाहते हैं और कुछ लोग बर्गर तो अब फैसला कैसे होगा? लोकतंत्र में सभी की सुनी जाती है और सभी से पूछा जायेगा की पिज़्ज़ा किस को खाना है और बर्गर किस को. अगर वोट ज्यादा पिज़्ज़ा के हुए तो सभी पिज़्ज़ा खायेंगे नहीं तो बर्गर. अब यदि बराबर वोट पिज़्ज़ा और बर्गर के हो जाते हैं तो फिर से चुनाव कराया जायेगा. यही सिस्टम भारत की राजनीती का भी है. आम पब्लिक पहले नेताओ को चुनती है और फिर नेता अपने प्रधानमंत्री को. अब यदि 272+ चुने हुए नेता एक ही नेता को प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं चुनते तो फिर जनता पर दोवारा छोड़ दिया जाता है और फिर से चुनाव का फैसला आम जनता को करना होता है.

पिज़्ज़ा और बर्गर वाले उदाहरण में अब यदि आपकी मम्मी आपका पिज़्ज़ा-बर्गर का अधिकार छीन लें और कोई विकल्प न हो बदले में सिर्फ रोटी ही दें तो ये उस समय तानाशाही होगी. तानाशाही शासन में सिर्फ एक ही पावरफुल शासक की चलती है. इसमें विद्रोह और दमन का दोनों होते हैं. शुक्र हैं हमारे भरत में लोकतंत्र है.

मेरा सभी अंधभक्तो से अनुरोध है की भारत का प्रधनमंत्री चाहे जो भी बने ये फैसला खुद जनता को करने दीजिये. खुद एक्सपर्ट बनकर अपनी राय मत थोपिए. अगर कुछ करना ही है तो वोट देने के लिए जागरूक करिए. यकीन मानिये सर्व सम्मति से जो फैसले लिए जाते हैं वे कभी गलत हो ही नहीं सकते.


चुनो वही जो लगे सही, वरना नोटा तो है की...

वोट जरुर करें.. जय हिन्द

-
इंजिनियर मैक मीर
डायरेक्टर 
आईटीमैकडॉटकॉम
आगरा

Friday, April 18, 2014

नोटा की जानकारी और भारत की राजनीती

 राइट टू रिजेक्ट का अर्थ है चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को ख़ारिज करने का अधिकार।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 26 सितम्बर 2013 को एक ऐतिहासिक फ़ैसला देते हुए देश के मतदाताओं को यह अधिकार दे दिया है कि वे अब मतदान के दौरान सभी प्रत्याशियों को खारिज कर सकेंगे। भारत की शीर्षस्थ अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में 'इनमें से कोई नहीं' के विकल्प का एक बटन उपलब्ध कराए।
आदेश में यह भी कहा गया कि यह व्यवस्था 2013 में होने वाले विधानसभा चुनाव से ही शुरू कर दी जाए ।
यह फैसला मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनाया। याचिका में मांग की गई थी कि वोटिंग मशीन ईवीएम में एक बटन उपलब्ध कराया जाए, जिसमें कि मतदाता के पास 'उपरोक्त में कोई नहीं' पर मुहर लगाने का अधिकार हो।
हालांकि चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि अगर नोटा (नन ऑफ द अबव-इनमें से कोई नहीं) बटन दबाने वाले मत चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों से भी ज्यादा पडे़गे तो भी उसका चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं होगा और अधिक मत हासिल करने वाला उम्मीदवार ही विजय घोषित किया जाएगा।

नोटा बटन किसलिए?

सामाजिक संगठनों और एन.जी.ओ. द्वारा दायर की गई पीआईएल पर सनुवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितम्बर,  2013 भारतीय मतदताओं को नोटा (इनमें से कोई नहीं) का अधिकार दिया। कोर्ट ने कहा कि नकरात्मक वोट भी अभिव्यक्ति की आजादी का अनुच्छेद 19-1 ए के तहत संवैधानिक अधिकार है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को सभी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में नोटा (इनमें से कोई नहीं) बटन लगाया जाये का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में इस बटन को लगाया गया, जिसमें 15 लाख से अधिक लोगों ने नोटा बटन का इस्तेमाल किया। मध्यप्रदेश की 26, छत्तीसगढ़ की 15, राजस्थान की 11 व दिल्ली की 4 सीटों पर जीत हार का अंतर नोटा पर परे वोटों से कम था।
भारत के ग्रामीण इलाकों में साक्षरता दर कम होने के कारण बहुत से मतदताओं को नोटा बटन के विषय में जानकारी नहीं है। 16 वीं लोकसभा में पहली बार नोटा बटन का प्रयोग देश में होगा। कोई भी राजनीतिक पार्टी इसकी जानकारी मतदाता को देना भी नहीं चाहता, वहीं चुनाव आयोग भी इसकी जानकारी मतदाताओं तक नहीं पहुंचाती है। चुनाव आयोग मतदान करने के लिए प्रचार व एस एम एस तो करवा रहा है लेकिन नोटा को लेकर कोई जानकारी नहीं दे रहा है। यहां तक कि चुनाव अधिकारियों को भी इसके विषय में ट्रेनिंग नहीं दी जाती है, जैसा कि विधानसभा चुनाव में दंतेवाड़ा के कट्टेकल्यान के मतदान अधिकारी मुन्ना रमयणम से जब बीबीसी संवादाता ने नोटा बटन के विषय में बात की, तो वे नोटा बटन को लेकर अनभिज्ञ थे। मुन्ना रमयण गोंडी भाषा भी जानते हैं जिससे वे वहां के मतदाताओं को आसानी से समझा सकते थे, लेकिन जब उनको ही मालूम नहीं है तो वो मतदाता को कैसे बतायेंगे?
नोटा के विषय में जहां कम मतदताओं को जानकारी है वहीं चुनाव आयोग इसकी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए निष्क्रय है। सामाजिक कार्यकर्तां इसकी जानकारी लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं तो अधिकारियों द्वारा नोटा के प्रचार की अनुमति नहीं दी जा रही है। नोटा का प्रचार करने से रोका जाना दर्शाता है कि चुनाव के दौरान अफसरशाही पूरी तरह से हावी हो जाती है। चुनाव आयोग भी मनमानी करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने को तब तक तैयार नहीं होता जब तक मामला किसी राजनीतिक दल द्वारा न उठाया जाये। राजनीतिक दल नोटा के प्रावधान से नाखुश है, यही कारण है कि वे भी नोटा के विषय में लोगों को नहीं बताना चाहते हैं और नोटा की प्रचार की अनुमति नहीं दिये जाने पर कोई भी राजनैतिक दल किसी प्रकार की टीका टिप्पणी करने को तैयार नहीं है।
मुलताई क्षेत्र से दो बार विधायक रहे डॉ. सुनीलम को विधानसभा चुनाव में नोटा के प्रचार की अनुमति यह कह कर प्रदान नहीं की कि वे प्रत्याशी या उसके एजेंट नहीं है। इस बार भी बैतुल निर्वाचन अधिकारी द्वारा अब तक नोटा के प्रचार के अनुमति प्रदान नहीं की गई है। डॉं सुनीलम ने चुनाव आयुक्त भारत सरकार को पत्र लिखकर नोटा के प्रचार की अनुमति न देने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने की मांग करते हुए कहा है कि गत विधानसभा चुनाव में भी मध्यप्रदेश में नोटा की प्रचार की अनुमति नहीं दी गई थी। सुनीलम को छिंदवाड़ा के निर्वाचन अधिकारी द्वारा 25 मार्च,  2014 को अनुमति प्रदान की गई, लेकिन 3 अप्रैल,  2014 को अनुमति निरस्त कर दी गई। उल्लेखनीय है कि गत विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा में 39,235 मतदताओं ने नोटा का बटन दबाया था।
इसी तरह किसान संघर्ष समित के महामंत्री लीलाधर चैधरी ने 22 मार्च को देवास निर्वाचन अधिकारी से अनुमति मांगी थी जो आज तक नहीं दी गई है। सिद्धी में 4 अप्रैल,  2014 को,  संयोजक उमेश तिवारी ने निर्वाचन अधिकारी सिद्धी से अनुमति मांगी थी लेकिन अनुमति प्रदान नहीं की गई, जिसकी शिकायत राज्य निर्वाचन अधिकारी को उमेश तिवारी जी द्वारा 8 अप्रैल को की गई।
डॉ सुनीलम द्वारा कई बार चुनाव आयोग को शिकयतें भेजने तथा सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख द्वारा चुनाव आयुक्त को दो बार पत्र लिखे जाने के बावजूद अब तक चुनाव आयोग द्वारा नोटा के प्रचार की अनुमति न देने वाले अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई हैं। भारत का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है लेकिन अधिकारियों द्वारा संवैधानिक अधिकार का हनन खुलेआम किया जा रहा है।
अन्ना हजारे भी नोटा के मुद्दों को लेकर चुनाव आयोग से मिले थे । तब आयुक्त एवं अन्य अधिकारियों ने उन्हें बताया था कि नोटा के प्रचार-प्रसार पर कोई रोक नहीं है। इसी तरह की जानकारी संजय पारिख जी को अधिकारियों द्वारा दी गई, लेकिन नोटा का प्रचार प्रसार नहीं हो पाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने जनभवनाओं को देखते हुए आदेश तो दे दिया कि नोटा बटन के रूप में मतदाताओं को विकल्प उपलब्ध कराया जाये। तो क्या यह विकल्प वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए है? जैसा कि नोटा में डाले गये वोट को अवैध ही माना जाता है उस वोट की गिनती हटा कर ही जमानत जप्त करने का प्रावधान है। जब मतदाता सोच समझ कर नोटा का बटन दबाता है तो उस वोट को अवैध कैसे माना जा रहा है?  क्या इस तरह का प्रावधान व्यवस्था से रूष्ट मतदाताओं की प्रक्रिया को ही अवैध घोषित नहीं कर रहा है?  क्या यह मतदाताओं का अपमान नहीं है? जिस तरह से चुनाव आयोग द्वारा नोटा में डाले गये मत को अवैध माना जाता है उससे तो यही लगता है कि नोटा कोई विकल्प है ही नहीं। नोटा वोट को अवैध माना जाना सुप्रीम कोर्ट की अवेहलना है या मतदाताओं को मतदान केन्द्र तक पहुंचाने का शिगुफा है?

Courtesy Links
http://hi.wikipedia.org/wiki/राईट_टु_रिजेक्ट_(भारत)
http://hindi.newsyaps.com/nota-for-what/29087

Thursday, April 3, 2014

अपने मोबाइल से हिंदी में टाइप कीजिये


आजकल हिन्दी टाइपिंग कीबोर्ड बहुत सी मोबाइल कंपनिया एंड्राइड फोन में उपलब्ध करा रही हैं. मगर इन टच कीबोर्ड से हिंदी टाइप करना आसान काम नहीं होता. ऐसे में गूगल का हिंदी इनपुट टूल बहुत कारगर है. यह सभी हिंदी कीबोर्ड एप्प से आसान और पोपुलर है.

गूगल हिंदी इनपुट टूल डाउनलोड करने के लिए अपने एंड्राइड मोबाइल में प्ले स्टोर खोलिए और Google Hindi Input सर्च कर डाउनलोड कर इनस्टॉल कर लीजिये.



इनस्टॉल हो जाने के बाद अपने मोबाइल की सेटिंग में जाकर लैंग्वेज & इनपुट में जाएँ और गूगल हिंदी इनपुट को इनेबल कर ओके कर दें. (Click on check box then ok)

यदि आपका मोबाइल एंड्राइड वर्ज़न 4+ है तो अपने मोबाइल में कोई भी टाइपिंग फील्ड जैसे SMS खोलिए और टाइप करने की कोशिश कीजिये. नोटीफिकेशन बार को नीचे लाइए और Choose Input Method को चुनिए.

अब Hindi Transliteration के आगे सर्किल पर टच कर दीजिये. 

बस हो गया. अब जब भी आपको हिंदी में टाइप करना हो तब आप कीबोर्ड में नीचे दिए गए a=>अ वाले बटन को दवा कर हिंदी में आसानी से टाइप कर सकते हैं. यह रोमन इंग्लिश में लिखे गए शब्दों को अपने आप हिंदी में लिखता जाता है. जैसे kshatriya लिखने पर क्षत्रिय लिखता है. और जब इंग्लिश में टाइप करना चाहते हैं तो a=>अ को फिर से दवा कर इंग्लिश में टाइप किया जा सकता है.

इस हिंदी इनपुट टूल को बस एक बार ही मोबाइल में सेट करना होता है. किसी भी इनपुट फील्ड में आसानी से हिंदी और इंग्लिश में किसी भी अवस्था में टाइप किया जा सकता है.

Congratulation..!! You can now type in Hindi.

यदि कोई प्रॉब्लम आये तो आप मुझे ईमेल कर सकते हैं makmeer@gmail.com या फिर नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में भी लिख सकते हैं.

Er. Mak Meer
Director 
ITMAK.COM

Tuesday, April 1, 2014

कैसे पहचाने की कंप्यूटर में वायरस है? समस्या और निदान.

 वायरस एक बहुत बड़ी समस्या है, और इस से बच पाना लगभग नमुमकिम सा है. सिर्फ आपका एंटीवायरस ही नहीं आपको भी वायरस से बचाव के उपाय खोजने पड़ेंगे, क्यूकि हैकर हर वक़्त नए कोड्स और आइडियाज आपके कंप्यूटर में इन्फेक्शन के लिए इजाद कर रहे हैं.
अब सवाल है की कैसे पता करें की कंप्यूटर में वायरस है या नहीं. इसके लिए कुछ बातें यहाँ मैं आपको बता रहा हूँ ज़रा ध्यान दीजिये.

1. कंप्यूटर परफॉरमेंस से अधिक धीमा हो गया है.
हो सकता है की कंप्यूटर में वायरस हो क्यूकि अवांछित प्रोग्राम (वायरस कोड) मेमोरी खाता है और कंप्यूटर की परफॉरमेंस पर असर डालता है. जिससे कंप्यूटर समान्य गति से कार्य करने की अपेक्षा अधिक धीमा हो जाता है.

2. एप्स स्टार्ट ना हो.
कुछ प्रोग्राम क्लिक करने (रन कराने) पर स्टार्ट नहीं हो रहे है तो इसका मतलब वायरस ने आपके प्रोग्राम का कोड इन्फेक्टेड कर दिया हो सकता है. इन्फेक्टेड प्रोग्राम को अनइनस्टॉल जल्दी करें क्यूकि यह इन्फेक्शन को बढ़ता ही है.

3. हार्ड डिस्क या इन्टरनेट अधिक प्रयोग हो रहा है.
जब आप काम कर रहे होते हैं तो हार्ड डिस्क या इन्टरनेट की इंडिकेटर लाइट बिजी शो करती है. लेकिन जब आप काम नहीं कर रहे हैं और लगातार हार्ड डिस्क या इन्टरनेट का प्रयोग हो रहा है तो ये कंप्यूटर में वायरस की निशानी दर्शाता है.

4. इन्टरनेट कनेक्ट करने पर.
यदि इन्टरनेट कनेक्ट करने पर अवांछित प्रोग्राम ओपन होने लगें. या फिर आपके वेब ब्राउज़र (इन्टरनेट एक्स्प्लोरर, मोज़िला फायरफॉक्स आदि) पर विज्ञापन की भरमार होने लगे तो समझिये कंप्यूटर में ज़रूर वायरस है.

5. फाइल्स हाईड होने लगें और शोर्टकट्स बनाने लगें.
ये तो बहुत ही कॉमन निशानी है वायरस इन्फेक्शन की. जब किसी इन्फेक्टेड कंप्यूटर में पेन ड्राइव लगाते ही सारा डाटा गायब हो जाए और उसके जगह शोर्टकट्स बन जाए तो यक़ीनन उस कंप्यूटर में वायरस है.

6. एंटीवायरस डिसेबल्ड और फ़ायरवॉल ओपन हो जाए.
वायरस सबसे पहले आपके एंटीवायरस को ब्लाक कर देता है. यदि आपका एंटीवायरस बंद हो जाए, क्रॉस लगा आये या फिर आइकॉन टास्क बार से गायब हो जाए तो कंप्यूटर में वायरस आ गया है.

इसके अलावा बहुत सी ऐसी निशानियाँ है जैसे की अलग भाषा में पॉप-उप मेसेज का आना, आपके कंप्यूटर का बार बार रीस्टार्ट होना, आइकॉन का चेंग हो जाना, विंडो की रजिस्ट्री ओपन न होना, टास्क मेनेजर का शो न करना आदि. समस्त संकेत किसी वायरस द्वारा इन्फेक्शन के हो सकते हैं.

इन्फेक्टेड कंप्यूटर को कैसे ठीक किया जाए..??

जितनी जल्दी हो सके अपना डाटा बैकअप लेने की कोशिश करें और फिर कोम्बोफिक्स चला दें. किसी भी इन्फेक्टेड कंप्यूटर के लिए रामबाण दवाई है.डाउनलोड करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

COMBOFIX DOWNLOAD

लगभग 15 से 30 मिनट्स में कोम्बोफिक्स इन्फेक्टेड कंप्यूटर के सारे वायरस निकाल देता है और अंत में एक टेक्निकल रिपोर्ट पेश कर देता है. ध्यान रहे की जब कोम्बोफिक्स कंप्यूटर के वायरस निकाल रहा हो तब कंप्यूटर को इसी के हवाले रहने दें. कोई प्रोग्राम न चलायें. हमेशा लेटेस्ट कोम्बोफिक्स का प्रयोग करें. 4 से 5MB का यह लाजबाब प्रोग्राम बहुत आसानी से कहीं भी डाउनलोड किया जा सकता है.

कोम्बोफिक्स से वायरस निकालने के बाद हो सकता है की आपके ड्राइव्स में फाइल्स शो नहीं कर रही हों. तो घबराइए नहीं फाइल्स वही हैं मगर हिडन हैं. सभी हिडन फाइल्स और फ़ोल्डर्स को शो कराने के लिए. कमांड प्रांप्ट में यह कमांड दें.

attrib -s -h -a /s /d <drive letter>:\*.*

बैच फाइल स्क्रिप्ट से भी काम आसान किया जा सकता है. (ओनली फॉर एक्सपर्ट्स)

@ECHO OFF
ECHO Type the drive letter. ONLY the letter.
ECHO ALL FILES ARE GOING TO BE MODIFIED!!!
set /p letter=

ECHO %letter%: selected
taskkill /im explorer.exe /f
ECHO.
ECHO "Modifying files..."
ECHO.

attrib -s -h -a /s /d %letter%:\*.*

ECHO "Process completed."

start explorer %letter%:
taskkill /im cmd.exe /f

किसी भी अन्य जानकारी के लिए नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में लिक्खे या फिर ईमेल करें makmeer@gmail.com
-
Er. Mak Meer
Director
ITMAK.COM

बूटेबल पेन ड्राइव कैसे बनाते हैं..?

आजकल बूटेबल पेन ड्राइव से कंप्यूटर में विंडोज / लायनक्स इनस्टॉल करने का चलन बढ़ता ही जा रहा है. और बढ़ना भी चाहिए क्यूकि आज सीडी/डीवीडी से बेहतर पेन ड्राइव हैं. पेन ड्राइव को बूटेबल बनाने के लिए आपके पास होना चाहिए.

1. एक 4 अथवा 8 जीबी का पेन ड्राइव.
2. आपके ओरिजिनल ऑपरेटिंग सिस्टम की ISO फाइल.
3. यूनिवर्सल USB इंस्टालर (UUI) Go Download

स्टेप बाई स्टेप 

(A) यूनिवर्सल USB इंस्टालर को डाउनलोड करने के रन कराएँ और I Agree पर क्लिक कर आगे बढ़ाएं.

B) विंडो 7 या विंडो 8 अथवा लायनक्स अपने हिसाब से चुनें.

(C) Browse पर क्लिक कर अपनी ISO फाइल की लोकेशन दें और स्टेप 3 में पेन ड्राइव को देखें. यदि पेन ड्राइव शो नहीं कर रहा है तो Show All Drives पर क्लिक कर देखें. याद रहे अपनी पेन ड्राइव का लैटर. गलती से हार्ड डिस्क लैटर न दे.

(D) Yes पर क्लिक कर आगे बढ़ें.

(E) लगभग 15 से 20 मिनट्स तक लेता है बनाने में.

(F) पूरा होने पर Close पर क्लिक कर फिनिश करें

तो लीजिये अब बनकर तैयार हो गई आपकी अपनी बूटेबल पेन ड्राइव. इस ड्राइव का प्रयोग आप अपने लैपटॉप, डेस्कटॉप में कभी भी विंडो इंस्टालेशन के लिए कर सकते हैं. 
-
Er. Mak Meer
Director
ITMAK.COM

Note : I am not providing any software and not taken liabilities. Do your own risk. Choose your own original ISO image file. Format your system you will responsible.