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Monday, October 29, 2012

ऑनलाइन पहचान की चोरी - सवाल पहचान का



एक सुबह आप उठें और आपको पता चले कि आपकी पहचान चोरी हो गई है तो आप क्या करेंगे? आप कहेंगे कि यह क्या अटपटा सवाल है, लेकिन जनाब ऐसा बिल्कुल हो सकता है। आपकी पहचान के साथ कोई खिलवाड़ कर रहा हो और आपको पता भी न हो। ऑनलाइन आइडेंटिटी थेफ्ट यानी ऑनलाइन पहचान की चोरी एक नया संकट है जिससे आज दुनिया भर में सैकड़ों लोग जूझ रहे हैं। इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है कि इंटरनेट पर कई तरीक़ों से हर एक की अपनी पहचान होती है जैसे कि उसका ई-मेल पता, ट्विटर, फेसबुक, लिंक्डइन और ऑर्कुट वगैरह सोशल नेटवर्किग साइटों पर प्रोफाइल आदि। अगर कोई व्यक्ति इनका या इनमें से किसी भी एक सेवा का पासवर्ड हथिया ले तो साइबर दुनिया में आपकी पहचान पर उसका कब्जा हो जाता है और वह इसका गलत फायदा उठा सकता है। आपके नाम से फर्जी प्रोफाइल बनाकर ऑनलाइन दुनिया में सक्रिय होने पर आइडेंटिटी थेफ्ट का मामला बनता है। अभिनेत्री प्रीति जिंटा अब भले ट्विटर पर सक्रिय हैं, लेकिन उन्हें जब अपने फर्जी ट्विटर एकाउंट का पता चला तब तक उनके फॉलोअर्स की संख्या 1,40,000 तक पहुंच गई थी। फेसबुक पर भी फर्जी प्रोफाइल की भरमार है। हाल में रिसर्च फर्म बाराकूडा लैब्स ने फर्जी फेसबुक प्रोफाइल संबंधी एक अध्ययन की रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक 97 फीसदी फर्जी प्रोफाइल महिलाओं के नाम से बनाए जाते हैं। फर्जी प्रोफाइल पर मित्रों की संख्या ज्यादा होती है। मतलब औसतन एक व्यक्ति के मित्रों की संख्या 130 होती है जबकि फर्जी प्रोफाइल धारकों के मित्रों की संख्या 730 के लगभग होती है।


फर्जी प्रोफाइल पर असल प्रोफाइल की तुलना में 100 फीसदी ज्यादा फोटो टैग किए जाते हैं, लेकिन यह रिसर्च फर्जी प्रोफाइल के बारे में है न कि पहचान चोरी के मामले में। ट्विटर पर प्रोफाइलों को वेरीफाई किया जाता है, लेकिन करोड़ों उपयोक्ताओं में ऐसे महज मुट्ठीभर लोग ही हैं जिनकी प्रोफाइल वेरीफाई की गई है। उनमें से भी अधिकांश वेरीफाइड प्रोफाइल जानी-मानी हस्तियों की होती है। साथ ही अधिकांश सोशल नेटवर्किग साइटें इस समस्या से पल्ला झाड़ने के लिए यह डिस्क्लेमर भी लगाकर रखती हैं कि प्रोफाइल पर दी गई सूचनाओं से साइट का कोई सरोकार नहीं है। टेकक्रंच के मुताबिक फेसबुक भी जल्दी ही प्रोफाइल को वेरीफाई करने की शुरुआत करने वाला है। जिन लोगों के खाते वेरीफाई किए जाएंगे वो मित्र बनाने संबंधी सुझाव में प्रमुखता से दिखाए जाएंगे। फेसबुक का यह फीचर कई लोगों के लिए खासा कारगर साबित हो सकता है, लेकिन दिक्कत यह है कि फेसबुक अभी इस फीचर पर ध्यान देने के मूड में नहीं है। माना जा रहा है कि वेरीफाई किए गए खातों के बारे में आम लोग नहीं जान पाएंगे। ऐसा होगा तो इस फीचर का आम लोगों के लिए कोई फायदा नहीं होगा।


मुंबई की निवासी मेलोडी लैला को को अप्रैल 2008 में पता लगा कि वे भी इस ऑनलाइन जालसाजी का शिकार हो चुकी हैं, जब उनके एक दोस्त ने उन्हें बताया कि किसी ने जोयी बिंदास के नाम से उनकी एक प्रोफाइल बना रखी है जिस पर उनकी तस्वीरें भी हैं। बाद में पता लगा कि ये तस्वीरें साइबर धोखेबाजों ने उनकी फ्लिकर प्रोफाइल से ली हैं। फ्लिकर एक ऑनलाइन सेवा है, जहां लोग अपनी तस्वीरों का ऑनलाइन संगृह कर सकते हैं। ऐसे तमाम उदाहरण लगातार सामने आ रहे हैं। मुश्किल तो यह है कि ज्यादातर ऑनलाइन सोशल नेटवर्किग सेवाएं इस बात की पड़ताल करने की कोशिश ही नहीं करती हैं कि जिस नाम से एकाउंट बनाया गया है और उस पर जो तस्वीरें इस्तेमाल की गई हैं क्या वे वाकई में उसी इंसान की हैं। इंटरनेट की पहुंच का दायरा इतना बढ़ चुका है कि इस तरह की ऑनलाइन जालसाजी न सिर्फ आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा तार-तार कर सकती है, बल्कि इसके चलते आर्थिक तौर पर भी आपको नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

Courtesy Link
(http://celebritywriters.jagranjunction.com/2012/02/20/writer-social-networking-sites-identity/)

Friday, October 19, 2012

युवा पीढ़ी और मोबाइल का प्रभाव



मोबाइल ने बेशक हमारी जिंदगी आसान की है लेकिन मोबाइल के साथ जुड़ी परेशानियों को भी हम नकार नहीं सकते. मोबाइल से होने वाले रेडिएशन और मोबाइल फोनों का गलत कामों के लिए इस्तेमाल होना आज हमारे लिए एक खतरे का सूचक बन चुका है. कहते हैं कि अति हर चीज की बुरी होती है उसी तरह लगता है मोबाइल की लत की वजह से हमें आने वाले समय में बहुत बड़ी-बड़ी परेशानियों से दो-चार होना पड़े.

अगर आज मोबाइल लोगों के भरोसे का साथी है तो उनके भरोसे को तोड़ने में भी मोबाइल ही सबसे अधिक सहायक रहा है. मोबाइल फोन पर लोगों का भ्रम भी है तो उन्हें भरोसा भी है. भ्रम इस बात का है कि मोबाइल के जरिए बच्चों पर निगाह बनाई जा सकेगी. भरोसा इस बात का कि जब जहां चाहे वहां संपर्क हो जाएगा. बात सही है, मोबाइल के कई फायदे हैं तो कई घातक नुकसान भी हैं.

बढ़ाए प्रेम प्रसंग के किस्से
आज समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग मानता है कि मोबाइल की वजह से समाज में प्रेम-प्रसंग बढ़ रहे हैं. मोबाइल उन लोगों के घर के लिए ज्यादा समस्या बना हुआ है जिनके घर जवान बच्चे हैं. मोबाइल के जरिए प्रेम प्रसंग की घटनाएं बढ़ी हैं. अश्लील मैसेज आदि भी मोबाइल की ही देन हैं. आजकल लड़के-लड़कियों के घर से भागने में मोबाइल अहम भूमिका अदा कर रहा है.


धोखाधड़ी बढ़ी
मोबाइल के इस्तेमाल के बाद से ही समाज में धोखाधड़ी के कई नए रूप देखने को मिल रहे हैं. मोबाइल ने किडनैपरों को तो जैसे जादू की छड़ी दे दी है. नंबर घुमाया माल हाजिर. तथाकथित प्रेम के पुजारियों ने अपने प्रेम को जगजाहिर करने के लिए ना जानें कितनी प्रेमिकाओं के अश्लील क्लिप बनाकर जगजाहिर किए, तो वहीं इस मोबाइल की वजह से आज लोगों में कई तरह की बीमारियां भी सामने आ रही हैं.


लेकिन ऐसा नहीं है कि मोबाइल के सिर्फ दुष्परिणाम ही हैं. अगर इसका सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए तोआप देखेंगे कि इससे बेहतर आविष्कार मानव जगत के लिए दूसरा हुआ ही नहीं. अब यह हमारे ऊपर है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को इससे किस तरह रूबरू कराते हैं.


Source Link
(http://technology.jagranjunction.com/2012/10/19/disadvantages-of-mobile-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A4%BE%E0%A4%AE/)

Tuesday, October 16, 2012

अब तो रोकिए कन्या भ्रूण-हत्या

 
हमारे देश की यह एक अजीब विडंबना है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में कन्या-भ्रूण हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। दुर्भाग्य है कि संपन्न तबके में यह कुरीति ज्यादा है। स्त्री-पुरुष लिंगानुपात में कमी हमारे समाज के लिए कई खतरे पैदा कर सकती है। इससे सामाजिक अपराध तो बढ़ेंगे ही, महिलाओं पर होने वाले अत्याचार में भी वृद्धि हो सकती है।

हाल ही में प्रकाशित केंद्रीय सांख्यिकी संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2001 से 2005 के अंतराल में करीब 6,82,000 कन्या भ्रूण हत्याएं हुई हैं। इस लिहाज से देखें तो इन चार सालों में रोजाना 1800 से 1900 कन्याओं को जन्म लेने से पहले ही दफ्न कर दिया गया। समाज को रूढ़िवादिता में जीने की सही तस्वीर दिखाने के लिए सीएसओ की यह रिपोर्ट पर्याप्त है। सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। गैरकानूनी और छुपे तौर पर कुछ इलाकों में तो जिस तादाद में कन्या भ्रूण हत्या हो रही है, उस पर सीएसओ की रिपोर्ट केंद्र सरकार के दावों को सिरे से खारिज करती है।




महिलाओं से जुड़ी समस्या पर काम करने वाली संस्था सेंटर फार सोशल रिसर्च इस समस्या से काफी चिंतित है। संस्था काफी समय से सरकार से इस बीमारी को रोकने के लिए हस्तक्षेप की मांग करती आ रही है। उधर सरकारी तर्क में कहा गया है कि 0.6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात सिर्फ कन्या भ्रूण के गर्भपात के कारण ही प्रभावित नहीं हुआ, बल्कि इसकी वजह कन्या मृत्यु दर का अधिक होना भी है।

बच्चियों की देखभाल ठीक तरीके से न होने के कारण उनकी मृत्यु दर अधिक है। इसलिए जन्म के समय मृत्यु दर एक महत्वपूर्ण संकेतक है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।

1981 में 0.6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 962 था, जो 1991 में घटकर 945 हो गया और 2001 में यह 927 रह गया है। इसका श्रेय मुख्य तौर पर देश के कुछ भागों में हुई कन्या भ्रूण की हत्या को जाता है। उल्लेखनीय है कि 1995 में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम नेटल डायग्नोस्टिक एक्ट 1995 के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है। इसके बावजूद इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता है। सरकार ने 2011 व 12 तक बच्चों का लिंग अनुपात 935 और 2016-17तक इसे बढ़ा कर 950 करने का लक्ष्य रखा है। देश के 328 जिलों में बच्चों का लिंग अनुपात 950 से कम है। जाहिर है, हमारे देश में बेटे के मोह के चलते हर साल लाखों बच्चियों की इस दुनिया में आने से पहले ही हत्या कर दी जाती है और सिलसिला थमता दिखाई नहीं दे रहा है। 



समाज में लड़कियों की इतनी अवहेलना, इतना तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है। जिस देश में स्त्री के त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है। हमारे समाज के लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा और लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात समाजशास्त्रियों, जनसंख्या विशेषज्ञों और योजनाकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है।

यूनिसेफ के अनुसार 10 प्रतिशत महिलाएं विश्व की जनसंख्या से लुप्त हो चुकी हैं, जो गहन चिंता का विषय है। स्त्रियों के इस विलोपन के पीछे कन्या भ्रूण हत्या ही मुख्य कारण है। संकीर्ण मानसिकता और समाज में कायम अंधविश्वास के कारण लोग बेटा और बेटी में भेद करते हैं। प्रचलित रीति-रिवाजों और सामाजिक व्यवस्था के कारण भी बेटा और बेटी के प्रति लोगों की सोच विकृत हुई है। समाज में ज्यादातर मां-बाप सोचते हैं कि बेटा तो जीवन भर उनके साथ रहेगा और बुढ़ापे में उनकी लाठी बनेगा। समाज में वंश परंपरा का पोषक लड़कों को ही माना जाता है।

पुत्र कामना के चलते ही लोग अपने घर में बेटी के जन्म की कामना नहीं करते। बड़े शहरों के कुछ पढ़े-लिखे परिवारों में यह सोच थोड़ी बदली है, लेकिन गांव, देहात और छोटे शहरों में आज भी बेटियों को लेकर पुरानी सोच बरकरार है।

आज भी शहरों के मुकाबले गांव में दकियानूसी विचारधारा वाले लोग बेटों को ही सबसे ज्यादा तव्वजो देते हैं, लेकिन करुणामयी मां का भी यह कर्तव्य है कि वह समाज के दबाव में आकर लड़की और लड़का में फर्क न करे। दोनों को समान स्नेह और प्यार दे। दोनों के विकास में बराबर दिलचस्पी ले। बालक-बालिका दोनों प्यार के बराबर अधिकारी हैं। इनके साथ किसी भी तरह का भेद करना सृष्टि के साथ खिलवाड़ होगा।


कन्या-भ्रूण हत्या का असली कारण हमारी सामाजिक परंपरा और मान्यताएं हैं जो मूल रूप से महिलाओं के खिलाफ हैं। आज भी सामाजिक मान्यताओं में शायद ही कोई परिवर्तन आया हो।

इतना जरूर है कि यदि कोई लड़की अपनी मेहनत और प्रतिभा से कोई मुकाम हासिल कर लेती है तो हमारा समाज उसे स्वीकार कर लेता है। हमने प्रशासन के लिए तो लोकतांत्रिक संस्थाएं अपना ली हैं, लेकिन उसका समाज तक विस्तार होना बाकी है। यही कारण है कि तमाम सरकारी कोशिशों के बावजूद कन्या- भ्रूण हत्या पर रोक नहीं लग पा रही है।

Source Link
(http://hindi.webdunia.com/samayik-article/%E0%A4%85%E0%A4%AC-%E0%A4%A4%E0%A5%8B-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%A3-%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-1121005043_1.htm)

Monday, October 15, 2012

ऐसे मिलती है सफलता. सफलता के मन्त्र.

अक्सर देखा जाता है कि युवा जब अपना सफल करियर नहीं बना पाते हैं तो इसका दोष वे दूसरों को देते हैं। अपनी नाकामियों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ने लगते हैं। यह याद रखिए अपनी नाकामी के जिम्मेदार आप खुद हैं। 

वे अनेक बातों का रोना रहते हैं, जैसे हमारे माता-पिता के कम पढ़े-लिखे होने के कारण वे हमारा करियर में मागदर्शन नहीं कर सके। हम पढ़ने की सुविधाएं नहीं मिली। पढ़ाई के दौरान हमें घर के कामों में लगाए रखा। घर में ज्यादा सदस्य होने से घरवालों ने हमारी ओर ध्यान नहीं दिया। 

ये ऐसी कुछ बातें हैं जो असफल युवा कहते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। अगर व्यक्ति कुछ करना चाहे और उसके हौसले बुलंद हों तो उसकी राह में कितनी भी मुसीबतें आएं वह सफल हो जाता है। 

एक अंग्रेजी कहावत का हिन्दी अर्थ है- 'किसी एक विचार या लक्ष्य के प्रति समर्पण के कारण ही एक सामान्य योग्यता रखने वाला व्यक्ति असाधारण प्रतिभा से संपन्न व्यक्ति बनता है।' 

कठिनाइयां हर किसी के जीवन में आती हैं बस उनका स्वरूप और उनसे लड़ने के तरीके अलग हो सकते हैं। उन कठिनाइयों को ढाल बनाकर अपनी नाकामी को उजागर न करें, बल्कि हर स्थिति से निकलना सीखें।


 याद रखिए दुनिया भी उन्हीं को याद रखती है जो संघर्षों से निकलकर सफलता के शिखर पर पहुंचता है। नाकामियों को रोना छोड़कर चल पड़िए मंजिल की राह पर। मुश्किलें तो आएंगी। अपनी नाकामियों को सफलता की मंजिल पाने का पड़ाव मानिए।

हिटलर का प्रसिद्ध वाक्य है, 'जो बिना संघर्ष के जीतता है वह विजेता कहलाता है लेकिन जो संघर्षों का सामना करके जीतता है वह इतिहास बनाने वाला कहलाता है।' 

इन बातों जीवन में हमेशा रखें ध्यान-
अगर आप किसी क्षेत्र में करियर बनाने में असफल हो गए हैं तो यह न सोचिए कि सिर्फ वही क्षेत्र आपके लिए बना था। 
आप दूसरे क्षेत्र में प्रयास कर सफलता को प्राप्त कर सकते हैं। 
पहाड़ी की चढ़ाई करते समय हमेशा ऊपर चढ़ने वालों को देखना चाहिए। नीचे वालों को देखेंगे तो हमें ऊंचाई से डर लगेगा। 
अपने आपको मोटिवेट कीजिए। सफलता की जो अनुभूति रहती है उसका मजा ही कुछ और है। 
जीत कुछ कर गुज़रने में है, हारकर बैठने में नहीं। प्रयास से सफलता मिल ही जाती है।


पढ़ाई में टॉपर बनना आपका सपना है तो इस सपने को आप मेहनत से हकीकत में बदल सकते हैं। इन सक्सेस मंत्रों को अपनाकर प्रतियोगी परीक्षा और एक्जाम में सफल हो सकते हैं। 



कड़ी मेहनत- सफलता हासिल करने का पहला मंत्र है कड़ी मेहनत। मेहनत का कोई शॉर्टकर्ट नहीं होता। यदि अपने पाठ्‍यक्रम की आवश्यकता के अनुसार कड़ी मेहनत करते हैं तो उसका फायदा मिलता ही है। 

खुश रहें- किसी भी परीक्षा की तैयारी के दौरान नकारात्मक विचारों से दूर रखें। हमेशा पॉजीटिव थिकिंग रखें। हमेशा खुश रहने की कोशिश करें। 

फोकस बनाए रखें- बिना फोकस बनाकर कई घंटे पढ़ाई करने से अच्छा है कि कुछ घंटे ध्यान लगाकर पढ़ाई करें। कुछ देर ही सही पर मन को एकाग्र रखकर पढ़ाई करें। 

सपनों को सच करने के लिए संघर्ष करें- हमेशा जीवन में बड़े सपने देखें और लागं टर्म गोल बनाएं। जब भी ऐसा लगे कि आप हार रहे हैं तो अपने सपनों को याद करें। खुद को यह अहसास दिलाएं कि सफने इतने ‍कीमती हैं कि ऐसा संघर्ष उन सपनों के सामने कुछ भी नहीं है।

Amiably Links
(http://yuva.webdunia.com/career/dosanddonts/1207/18/1120718071_1.htm)
(http://yuva.webdunia.com/career/dosanddonts/1207/02/1120702047_1.htm

ओ माई गॉड – एक सफल सामाजिक फिल्म


कबीर ने वर्षों पहले धर्म की ओट लेकर समाज को अंधकार युग में ले जाने वाले धर्मांध लोगों पर काफी कुछ अपनी कविता के माध्यम से कहा था। विभिन्न धर्म में जारी गलत प्रथाओं पर उन्होंने करारी चोट की थी।
कबीर ने हिंदू धर्म में जारी पूजा प्रथा पर प्रहार करते हुए लिखा– पत्थर पूजे हरि मिले तो, मैं पूजूं, पहाड़। उससे तो चक्की भली जो पीस खाए संसार।।
तो दूसरी तरफ, उन्होंने मुस्लिमों की मस्जिदों में अजान पर भी सवाल उठाए। कबीर के अनुसार – कांकड़-पाथर जोड़ के मस्जिद लिया बनाए। ता चढ़ी मुल्ला बांग दे। क्या बहरा हुआ खुदाय।।
कबीर समाज में बढ़ रहे धर्मांधता को लेकर चिंतित थे। उन्होंने आजीवन इसका विरोध किया। वे पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन उन्होंने अपनी बातों से जनमानस के बड़े भाग को गहरे तौर पर प्रभावित किया।
आज वर्षों के बाद, एक फिल्म देखी – ओ माई गॉड जो धर्मांधता के विरोध में बनी है। इस फिल्म के माध्यम से निर्देशक ने बड़े ही सीधे और सरल तौर पर मंदिर, मस्जिद और गिरिजाघरों में फैले भ्रष्टाचार और पूजा-पाढ़ पर प्रहार किया है।
 एक तरफ, इस महंगाई के युग में आम-आदमी जीवन जीने के लिए तमाम तरह की मुश्किलें सह रहा है। फिर भी वो अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोजी-रोटी जुटाने में अपने को असमर्थ पा रहा है तो दूसरी तरफ मंदिर-मस्जिद और गिरिजाघरों में बैठे धर्म अधिकारी उन्हें भाग्य का भय दिखाकर भयादोहन करने में लगे हैं। मंदी के इस युग में तो ऐसे लोगों का धंधा और तेजी से पसर रहा है। हर किसी को इससे बाहर निकलने के लिए पूजा-पाढ़ और चमत्कार में भरोसा रह गया है, जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं।
स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है – कर्मण्येवाधिका रस्ते मां फलेषु कदाचने। कर्म करो, फल की चिंता मत करो। फल ईश्वर पर छोड़ दो।
लेकिन इधर हाल के दिनों में ऐसा देखने को आ रहा है कि भ्रष्ट और जुगाड़ी लोग तमाम तरह के सुख भोग रहे हैं और जो लोग इसके वास्तविक हकदार हैं, उनसे उनका हक छीना जा रहा है। जोर-जबरदस्ती के बल पर। और उन्हें यह समझाया जाता है कि गरीबी में जीवन व्यतीत करना उनके भाग्य में लिखा हुआ है। देखिए, किस तरह की चोरी और सीनाजोरी चल रही है।
एक तरफ, मंदिरों में दूध की नदियां बह रही है तो दूसरी तरफ वही मंदिर के बाहर कई गरीब भिखारी बैठे रहते हैं, बस इस इंतजार में कि कोई भक्त उन्हें कुछ खाने को दे दे। वहीं मस्जिदों और पीर के दरगाह पर भी लोग चादर चढ़ाते हैं लेकिन दूसरी तरफ, उन्हीं के समुदाय में गरीब व्यक्ति दाने-दाने को मोहताज रहता है। और इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। क्योंकि उनकी दुकान फिर नहीं चलेगी।
जिस साईं बाबा ने अपनी जिंदगी में लेत की एक-एक बूंद को जमा किया। उन्हीं के मंदिर में करोड़ों का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। क्या इससे किसी गरीब जनता को कोई लाभ होता है? इस देश में ऐसे कई हजार मंदिर, मस्जिद औऱ गिरिजाघर हैं जिनके पास अथाह संपत्ति है लेकिन उसका इस्तेमाल आम-आदमी की गरीबी मिटाने के लिए नहीं किया जाता बल्कि उसकी संपत्ति का लाभ उसके व्यवस्थापक उठाते रहे हैं। इसमें सरकार का भी अपना सहयोग रहा है। वोटबैंक जो ना कराए। इनके प्रबंधक समय-समय पर सरकार में शामिल दलों को मोटी चुनावी रकम मुहैया कराते रहे हैं।

गिरिजाघरों में लोग कितने कैंडल जलाते हैं लेकिन अगर यही कैंडल किसी गरीब इसाई के घर जले तो उसके घर से अंधकार मिट जाएगा। शायद ऐसा सोचना उनके धंधे पर प्रहार करने जैसा है। और ये लोग इस तरह के किसी भी सामाजिक सुधार के कार्य को होने नहीं देते हैं।
समाज में, शिक्षा की कमी और लोगों के विभिन्न धर्म, संप्रदाय के प्रति गहरी आस्था का इनके धर्मगुरू गलत लाभ उठाते रहे हैं। अगर लोग जागरूक हो जायें तो ऐसे लोगों की दुकान स्वत: ही बंद हो जाएगी।
और अंत में, ओ माई गॉड फिल्म एक अच्छा सामाजिक संदेश देने में कामयाब रही है। ओ माई गॉड के निर्देशक एवं कलाकारों को हमारा हार्दिक अभिनंदन। इसी तरह से, आगे भी सामाजिक मुद्दों को अपनी फिल्म का हिस्सा बनाते रहें।
इसी आशा के साथ।
by हरेश कुमार
Amiably (http://hareshkumar.jagranjunction.com/2012/10/15/%E0%A4%93-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%88-%E0%A4%97%E0%A5%89%E0%A4%A1-%E2%80%93-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%AB/)

Sunday, October 14, 2012

सावधान! कहीं आपकी यह हरकत महंगी ना पड़ जाए


 

मोबाइल, इंटरनेट और फेसबुक आज ऐसी चीज बन गए हैं जो लगभग हर युवा वर्ग की पहुंच में हैं. मनोरंजन के यह साधन आज युवाओं के लिए एक नशे की तरह हो चुके हैं. इस नशे में वह इतने धुत्त हो जाते हैं कि उन्हें अच्छे और बुरे का कुछ ख्याल ही नहीं रहता और इसी में युवा अश्लीलता की तरफ मुड़ने लगते हैं.

Nudity on Emails and SMS: अश्लीलता की तरह मुड़ता शौक
इंटरनेट पर न्यूड फोटो देखना और उसे शेयर करने के साथ अश्लील मैसेजों को भेजना तो अब बेहद आम हो चला है. लेकिन परेशानी तब होती है जब कुछ बेहद मनचले किसी अनजान को इस तरह के मैसेज और तस्वीरें भेजते हैं जो ऐसी चीजें पसंद नहीं करता और इसकी कंप्लेन पुलिस को करता है. ऐसी स्थिति में पहले पुलिस गुनहगार को पकड़कर पहले समझाती थी और फिर बाद में दूसरी बार पकड़े जाने पर सजा देती थी लेकिन अब पुलिस कोई पहला मौका नहीं देगी. तो अगर आप या आपकी जानकारी में कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसे सावधान कर दीजिए.

New Act against Nudity: नया कानून
ईमेल या एमएमएस के जरिए किसी महिला की अश्लील तस्वीर को भेजना अब तीन साल तक की सजा का सबब बन सकता है. यह सजा पहली बार पकडे़ जाने पर मिलेगी. केंद्र सरकार ने महिलाओं की छवि अश्लील तरीके से प्रस्तुत करने को रोकने संबंधी अधिनियम-1986 में संशोधनों को मंजूरी दे दी है. अब इसे संसद में मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा. संशोधनों के दायरे में टीवी कार्यक्रम और इलेक्ट्रॉनिक सामग्री भी आएगी.
सजा सख्त बनाते हुए संशोधित विधेयक में प्रावधान किया गया है कि पहली बार दोषी पाए जाने पर अपराधी को अधिकतम तीन साल की कैद और 50 हजार से 1 लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा. दूसरी बार अपराध करने वाले के लिए जहां 2 से 7 साल तक की कैद होगी, वहीं 1 लाख से 5 लाख रुपये तक जुर्माना संभव होगा. केंद्र सरकार के अनुसार नए संशोधनों का उद्देश्य इंटरनेट, मैसेजिंग के जरिए महिलाओं के खिलाफ समाचारों में अश्लील छवि का प्रसार रोकना है.


पहले का कानून
2000 में बनाए गए इन्फॉर्मेशन एंड टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 66 के सेक्शन ए के तहत मोबाइल या इंटरनेट के माध्यम से किसी भी स्त्री को अश्लील एसएमएस, ई-मेल या तसवीरें भेजना, धमकी देना या फोन पर अश्लील बातें करना संज्ञेय अपराध माना गया है. अर्थात केवल स्त्री द्वारा दर्ज कराए गए एफआईआर के आधार पर पुलिस आरोपी को बिना वारंट जारी किए पूछताछ के लिए अपनी हिरासत में 24 घंटे तक रख सकती है. इसके लिए पुलिस को कोर्ट से अनुमति लेने की भी आवश्यकता नहीं होती. इसके अलावा आई.पी.सी. की धारा 499 के तहत ऐसा करने वाले व्यक्ति पर मानहानि का भी मुकदमा दर्ज किया जा सकता है और आरोप सिद्ध हो जाने पर उसे तीन साल के लिए कारावास की सजा भी हो सकती है.

अगर आपके साथ ऐसा होता है तो
अगर आपको कोई बारबार अश्लील एसएमएस और ईमेल भेजता है तो पुलिस या महिला हेल्पलाइनों का इस्तेमाल कर सकते हैं जिसके लिए आप निम्न नंबर का प्रयोग करें:
दिल्ली के लिए
100 (Delhi Police Helpline): यह दिल्ली पुलिस की फ्री हेल्पलाइन नंबर है. इस नंबर पर कॉल करके अगर कोई आपका पीछा कर रहा है या आपके साथ छेड़खानी की कोशिश कर रहा है या फिर आपके गंदे एसएमएस कर रहा है तो उसकी जानकारी दे सकते हैं.
1091(Women Helpline in Delhi): अगर महिलाओं को किसी तरह की परेशानी है तो वे इस नंबर पर कॉल कर सकती हैं.
1096(Women Helpline in Delhi): अश्लील एसएमएस भेजने, पीछा करने व फोन करने पर 1096 पर कॉल कर सकते हैं. इस नंबर पर कॉल करने पर आपका नाम गुप्त रखा जाता है. आप अश्लील एसएमएस को 9911135446 पर फारवर्ड भी कर सकते हैं. किसी भी तरह की परेशानी पर महिलाएं 27894455 लैंड लाइन पर फोन भी कर सकती हैं.

उत्तर प्रदेश में
1010(UP Police Helpline): उत्तर प्रदेश में मोबाइल पर फोन या अश्लील एसएमएस भेजकर लड़कियों को परेशान करने वालों पर लगाम लगाने के लिए टोल फ्री हेल्पलाइन नम्बर 1010 की शुरुआत की गई है जहां लड़कियां अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं.

Amiably(http://technology.jagranjunction.com/2012/10/14/beware-of-nudity-in-internet/)

Saturday, October 13, 2012

जीमेल से फ्री एसएमएस भेजने की सुविधा


अगर आप फ्री में एसएमएस भेजने के आदी हैं तो आपके लिए एक खुशखबरी है. भूल जाइए अब बार-बार एसएमएस पैक डलवाने के झंझट को. अगर आप इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और आपका जीमेल पर अकाउंट है तो आप इस सेवा का लाभ उठा सकते हैं. आइए जानें आखिर किस तरह जीमेल से हम फ्री एसएमएस भेज सकते हैं.

जीमेल से फ्री एसएमएस भेजने की सुविधा
आज तकनीक के इस युग में इंटरनेट की पहुंच लगभग हर इंसान तक है. आज समाज का एक बड़ा हिस्सा इंटरनेट के पूरी तरह वाकिफ है और इसका इस्तेमाल करता है. इंटरनेट की ही एक सुविधा जीमेल भी है जिसका प्रयोग लोग बड़े पैमाने पर ईमेल भेजने के लिए करते हैं. अब इसी जीमेल के द्वारा आप चाहें तो अपने दोस्तों को फ्री एसएमएस भेज सकते हैं. आपका दोस्त चाहे ऑनलाइन हो या ऑफलाइन आप उसे कभी भी एसएमएस भेजिए.

नोट: हालांकि इस एसएमएस का रिप्लाई करने के लिए आपके दोस्त के पास इंटरनेट होना जरूरी है या फिर उसे अपने फोन द्वारा ही रिप्लाई करना होगा. बहुत हद तक आप इसे वन-वे सुविधा मान सकते हैं.


How to Send Free SMS through Gmail: जीमेल से एसएमएस भेजने का तरीका
  • जीमेल से एसएमएस भेजने के लिए आपको सबसे पहले जिसे एसएमएस भेजना है उसे अपने कॉंटेक्ट फ्रेंड चैट में जोड़ना होगा.
  • नाम जोड़ने के बाद वह शख्स आपकी फ्रेंड लिस्ट में शामिल हो जाएगा और तब आप उससे चैट करने के लिए विंडो खोलें.
  • विंडो खोलने के बाद वहां पर साइड में बने ड्राप डाउन (नीचे की तरफ बने बटन) पर क्लिक कीजिए और सेंड एसएमएस पर क्लिक कीजिए.
  • इसके बाद आपको एक नई विंडो में अपने दोस्त का मोबाइल नंबर और जगह डालना होगा. जानकारी भरने के बाद सेव बटन दबाएं.
  • अपनी जानकारी सेव करने के बाद चैट विंडो में ऊपर की ओर आपकी डीटेल के साथ मैसेज टाइप करने का बॉक्स खुल जाएगा. इस बॉक्स के ठीक ऊपर आपकी एसएमएस लिमिट भी लिखी होगी.
  • मैसेज बॉक्स में अपना संदेश टाइप कर सेंड कर दें. ऐसे में आपका मैसेज सामने वाले के पास पहुंच जाएगा.
नोट: अभी इस सेवा को इस्तेमाल करने के लिए आपको गूगल की तरफ से 50 मैसेज मुफ्त मिल रहे हैं जिसकी लिमिट हो सकती है बाद में बढ़ा दी जाए. जैसे ही यूज़र 1 एसएमएस भेजता है तो 1 क्रेडिट कम हो जाएगी. क्रेडिट लिमिट 50 की होगी.

Amiably (http://technology.jagranjunction.com/2012/10/13/new-trick-for-mms/)